सिर्फ शादी से इनकार करना आत्महत्या के लिए उकसावा नहीं: सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी में स्पष्ट किया है कि केवल शादी से इनकार कर देने मात्र से किसी व्यक्ति पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 107 के तहत मामला दर्ज नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि यह आत्महत्या के लिए उकसाने के समान नहीं माना जा सकता।
यह फैसला न्यायमूर्ति डी. बी. पारडीवाला और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने यादविंदर उर्फ सनी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। यह मामला एक युवती की आत्महत्या से जुड़ा था, जिसमें मृतका की मां ने आरोप लगाया था कि युवक ने शादी का वादा करने के बाद इनकार कर दिया, जिसके चलते उसकी बेटी ने जहर खाकर जान दे दी।
अभियोजन पक्ष ने कहा कि युवक ने पहले लड़की को विवाह का आश्वासन दिया और फिर धोखा दिया, जिसके कारण उसने आत्महत्या की। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सका जिससे यह सिद्ध हो सके कि आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसावा) या धारा 107 (उकसावे की परिभाषा) के तहत मामला बनता है।
सुनवाई के दौरान अदालत ने अपने पुराने निर्णयों में निपुण अनीता बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और जियो वर्गीज बनाम राजस्थान राज्य का उल्लेख किया। पीठ ने कहा कि “उकसावा तभी माना जा सकता है जब किसी व्यक्ति द्वारा जानबूझकर सहायता या प्रेरणा देने की मानसिक प्रक्रिया शामिल हो।”
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल शादी से इनकार करना, चाहे वह सच्चे कारण से ही क्यों न हो, आईपीसी की धारा 107 के तहत ‘उकसावा’ नहीं माना जा सकता।
न्यायाधीशों ने यह भी कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक युवती ने अपनी जान गंवाई। उन्होंने टिप्पणी की, “संभव है कि उसे मानसिक या भावनात्मक रूप से गहरी ठेस पहुंची हो, लेकिन अदालत को केवल उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर ही निर्णय देना होता है।”
