Top Maoist Surrender : शीर्ष नक्सली कमलू के आत्मसमर्पण की चर्चाएं तेज, सुरक्षा एजेंसियों की कड़ी निगरानी
बीजापुर। Top Maoist Surrender : बस्तर के जंगलों से एक बड़ी खबर सामने आई है। बताया जा रहा है कि नक्सली संगठन (CPI-Maoist) का वरिष्ठ कमांडर कमलू, जो करीब 25 से 30 वर्षों से सक्रिय है, अब हथियार छोड़ने की सोच रहा है। सूत्रों की मानें तो कमलू संगठन में DVCM (Divisional Committee Member) के पद पर लंबे समय से कार्यरत रहा है और कई महत्वपूर्ण ऑपरेशनों की योजना में उसकी भूमिका रही है।
कमलू ने जताई मुख्यधारा में लौटने की इच्छा, प्रशासन सतर्क
जानकारी के अनुसार, कमलू ने हाल के दिनों में अपने करीबियों के ज़रिए इस बात के संकेत दिए हैं कि वह अब mainstream life अपनाना चाहता है। माना जा रहा है कि लगातार होते सुरक्षा अभियानों और घटते जनसमर्थन ने उसे इस दिशा में सोचने को मजबूर किया है।
बीजापुर प्रशासन ने आधिकारिक पुष्टि तो नहीं की है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक security forces उसकी हर गतिविधि पर नजर रखे हुए हैं।
अगर आत्मसमर्पण हुआ तो नक्सल मोर्चे पर बड़ी जीत होगी
अगर वाकई में Top Maoist Surrender होता है, तो इसे बस्तर क्षेत्र में नक्सल मोर्चे पर एक निर्णायक सफलता माना जाएगा। लंबे समय से जंगलों में सक्रिय किसी वरिष्ठ नेता का हथियार डालना, संगठन के भीतर बढ़ते असंतोष और कमजोर पड़ते तंत्र का संकेत है।
सुरक्षा एजेंसियों को उम्मीद है कि इस कदम से अन्य माओवादी भी surrender policy का हिस्सा बन सकते हैं।
हाल के महीनों में 200 से ज्यादा नक्सलियों ने छोड़ा हथियार
पिछले कुछ महीनों में छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों में 210 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया था। इनमें कई बड़े कमांडर और सक्रिय कैडर शामिल थे। इन सरेंडरों के बाद से नक्सली इलाकों में हिंसा के मामलों में भी गिरावट दर्ज की गई है।
जानकारों का कहना है कि सरकार की पुनर्वास नीति (Rehabilitation Policy) और लगातार चलते anti-naxal operations ने इस बदलाव को तेज किया है।
‘Top Maoist Surrender’ से माओवादी आंदोलन को गहरी चोट लग सकती है
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कमलू जैसा वरिष्ठ माओवादी हथियार डालता है, तो यह न केवल संगठन के लिए मनोवैज्ञानिक झटका होगा, बल्कि आने वाले समय में माओवाद के खिलाफ जारी मुहिम को और बल मिलेगा।
यह कदम उन युवाओं के लिए भी प्रेरणा बन सकता है जो आज भी जंगल के रास्ते को ही जीवन समझते हैं। अब विकास, शिक्षा और रोज़गार के अवसर उन्हें नई दिशा दे सकते हैं।
